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रामायण की रहस्यमयी किरदार त्रिजटा: युद्ध के बाद उनका क्या हुआ?

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रामायण की रहस्यमयी किरदार त्रिजटा: युद्ध के बाद उनका क्या हुआ?

रामायण की कथा में कई ऐसे पात्र हैं, जो अपनी विशेष भूमिकाओं के कारण अमर हो गए। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती। ऐसी ही एक रहस्यमयी और महान किरदार थीं त्रिजटा, एक राक्षसी, जिन्होंने माता सीता का साथ दिया और रावण के खिलाफ खड़ी रहीं। उनके प्रति जिज्ञासा का कारण यह भी है कि युद्ध के बाद उनकी क्या भूमिका रही। आइए इस लेख में त्रिजटा की कहानी को विस्तार से समझें।


त्रिजटा: राक्षसी होते हुए भी धर्म की पक्षधर

त्रिजटा, रावण की सेना की एक प्रमुख राक्षसी थीं, जिन्हें माता सीता की देखभाल का कार्य सौंपा गया था। हालांकि, वह न केवल एक देखभालकर्ता थीं, बल्कि माता सीता की सच्ची समर्थक और सहयोगी भी थीं।

  1. सीता की रक्षक: जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर उन्हें अशोक वाटिका में रखा, तो त्रिजटा को उनकी निगरानी और सेवा का कार्य दिया गया। लेकिन त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों को माता सीता को परेशान करने से रोका और उन्हें हर संभव सहारा दिया।
  2. भविष्यवाणी की शक्ति: त्रिजटा को दिव्य दृष्टि और भविष्यवाणी करने की क्षमता प्राप्त थी। उन्होंने लंका के विनाश और रावण की मृत्यु की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने अपने स्वप्न में भगवान राम की जीत और रावण के पतन को देखा और इसे अन्य राक्षसियों को बताया।
  3. रावण को सलाह: त्रिजटा ने अपने स्वप्न के आधार पर रावण को चेतावनी दी थी कि यदि वह माता सीता को भगवान राम को वापस नहीं करेगा, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। लेकिन रावण ने उनकी सलाह को अनसुना कर दिया।

त्रिजटा का युद्ध के बाद का जीवन

जब रावण का अंत हुआ और विभीषण लंका के राजा बने, तब त्रिजटा ने विभीषण के राजदरबार में एक सम्मानित स्थान प्राप्त किया। विभीषण की धार्मिकता और राम भक्ति के कारण उनका जीवन सुखद और शांतिपूर्ण रहा होगा।

त्रिजटा की भक्ति और तपस्या

त्रिजटा भगवान राम की दिव्यता को पहले ही पहचान चुकी थीं। कई मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने लंका में राम भक्ति और धर्म का प्रचार-प्रसार करने का कार्य किया। अन्य कथाओं में यह भी उल्लेख है कि उन्होंने तपस्या का मार्ग अपनाया और एक साध्वी का जीवन जिया।

सीता से स्नेह और आशीर्वाद

त्रिजटा का माता सीता के प्रति गहरा स्नेह और निष्ठा था। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें भगवान राम और माता सीता से विशेष आशीर्वाद प्राप्त हुआ। यह भी माना जाता है कि त्रिजटा को उनके धर्म और निष्ठा के लिए एक दिव्य जीवन का वरदान मिला।


त्रिजटा: एक प्रेरणा

त्रिजटा की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा सम्मान और शांति प्राप्त करता है, चाहे उसकी परिस्थितियाँ कैसी भी हों।


त्रिजटा, रामायण की एक ऐसी किरदार हैं, जिनके बिना इस महाकाव्य की कहानी अधूरी है। उनकी सेवा, निष्ठा और भविष्यवाणी की शक्ति ने रामायण की कथा को और भी प्रेरणादायक बना दिया। युद्ध के बाद उनका जीवन भक्ति और धर्म का प्रतीक बना।

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